गुरुवार, मार्च 15, 2007

दोहे १

माला फेरत जुगत गया मिटा ना मन का फेर
करका मनका डारि दे, मन का मनका फेर

गुरू गोबिंद दोउ खड़े, काके लागू पाये
बलिहारी गुरू आपने, गोबिंद दिओ बताऐ

करत करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान
रसरि आवत जात ते सिल पर पडत निसान